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कुछ नहीं है ज़िन्दगी में अब है ख़ाली ज़िन्दगी / जावेद क़मर
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कुछ नहीं है ज़िन्दगी में अब है ख़ाली ज़िन्दगी।
लग रहा है बन गई है इक सवाली ज़िन्दगी।
जिस को है पास-ए-वफ़ा पास-ए-हया इस दौर में।
ज़िन्दगी है अस्ल में उस की मिसाली ज़िन्दगी।
शाह के दरबार में भी सर न ख़म हम ने किया।
हम जिये जब तब, गुज़ारी शान वाली ज़िन्दगी।
इस समन्दर से कोई मोती नहीं हम को मिला।
यूँ तो हम ने उम्र भर अपनी संभाली ज़िन्दगी।
सो गए हम ओढ़ कर तन्हाई में सारी थकन।
मौत ने अपने गले जिस दम लगा ली ज़िन्दगी।
ज़िन्दगी से तुम अभी वाक़िफ़ नहीं अच्छी तरह।
इस लिए लगती है तुम को भोली भाली ज़िन्दगी।
हैं बहारें ही बहारें शह्र में लेकिन 'क़मर' ।
शह्र से बेहतर है फिर भी गाँव वाली ज़िन्दगी।