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"कैप्सूल / पूजा प्रियम्वदा" के अवतरणों में अंतर

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09:25, 27 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

दिन में
उतनी ही बार
निगलनी हैं गोलियाँ
जितनी बार कहते थे--
सुनिये...
कि ज़िन्दा होने के
कुछ तो भरम
बाकी रहें
घुलनशील कैप्सूल
सुन्दर दिखता है
लेकिन कड़वा है