भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोरे थे पन्ने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
इल्ज़ाम था जितना,
 
इल्ज़ाम था जितना,
 
सिर पे लिया।
 
सिर पे लिया।
 +
351
 +
टूटा सन्नाटा
 +
जाग उठे सपने
 +
स्मिति बिखेरें।
 +
352
 +
बोझिल मन
 +
भूल गया पल में
 +
सारी तपन।
 +
353
 +
कुछ तो कहो
 +
घना हुआ अँधेरा
 +
हाथ  ये गहो ।
 +
354
 +
फासले रहे
 +
कुछ मन ने कहा
 +
मिटी दूरियाँ।
 +
355
 +
ऊँची उड़ान
 +
छू आई आसमान
 +
भावों की डार।
 +
356
 +
दर्द हमारे
 +
जब बँट जाएँगे,
 +
घट जाएँगे।
 +
357
 +
दुआ में हाथ
 +
जब–जब उठाए
 +
तुम ही दिखे ।
 +
358
 +
विधि ने लिखे
 +
हम सब के भाग
 +
आँसू व गीत।
 +
359
 +
भीगें पलकें
 +
अँजुरी भरे आँसू
 +
जब छलके।
 +
360
 +
चाँद उदास
 +
लगा तुम रोए हो
 +
जीभर आज।
 +
361
 +
पावन मन
 +
ख़ुशबू से महके
 +
पूत वचन।
 +
 
</poem>
 
</poem>

08:48, 9 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

346
बाण न बींधे,
मन करे छलनी
बातों की चोट!
347
पाप न किया,
फिर भी दे दी सजा,
माफ़ न किया!
348
सब सहेंगे,
साँसें हैं जब तक,
चुप रहेंगे।
349
लकीरें मिटीं,
तक़दीर क्या पढ़ें.
कोरे थे पन्ने ।
350
कुछ न किया,
इल्ज़ाम था जितना,
सिर पे लिया।
351
टूटा सन्नाटा
जाग उठे सपने
स्मिति बिखेरें।
352
बोझिल मन
भूल गया पल में
सारी तपन।
353
कुछ तो कहो
घना हुआ अँधेरा
हाथ ये गहो ।
354
फासले रहे
कुछ मन ने कहा
मिटी दूरियाँ।
355
ऊँची उड़ान
छू आई आसमान
भावों की डार।
356
दर्द हमारे
जब बँट जाएँगे,
घट जाएँगे।
357
दुआ में हाथ
जब–जब उठाए
तुम ही दिखे ।
358
विधि ने लिखे
हम सब के भाग
आँसू व गीत।
359
भीगें पलकें
अँजुरी भरे आँसू
जब छलके।
360
चाँद उदास
लगा तुम रोए हो
जीभर आज।
361
पावन मन
ख़ुशबू से महके
पूत वचन।