भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गर्मी-1 / सुधा गुप्ता

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:36, 23 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा गुप्ता }} {{KKCatKavita}} <poem> 1 तन्दूत तपा धरती रोटी सि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1
तन्दूत तपा
धरती रोटी सिंकी
दहक लाल
2
आग का गोला
फट गया सुबह
बिखरे शोले
3
सूखे गले से
कलप रही हवा
घूँट पानी के
4
लपटों -घिरा
अगिया बैताल-सा
लू का थपेड़ा
5
आग की गुफ़ा
भटक गई हवा
जली निकली
6
फटा पड़ा है
हज़ार टुकड़ों में
पोखर-दिला
   
7
धूप से तपा
देह पर फफोले
ले, दिन फिरा
8
कुपिता धरा
अगन-महल में
आसन-पाटी
9
धूप दरोगा
गश्त पर निकला
आग-बबूला
10
जेठ की आँच
हवाएँ खौलती हैं
औटते जीव
11
पानी की धुन
सूखे गले भटके
राजा मछेरा*
12
धधक रही
लाल पीली कनेर
सरकों पर

13
फूलों से लदा
बूला होशो-हवास
अमलतास
14
हत शोभाश्री
निर्जला उपासी
जेथ की धरा
15
उबल रहे
ब्रह्माण्ड के देग में
चर-अचर
16
वन-अरण्य
जलें रूई मानिन्द
लपटें, धुँआ
17
आया है द्वार
धूल-भरी झोली ले
जोगी बैसाख
18
अंगारे बिछा
सोने चली धरती
लपटें ओढ़

19
नीम-बेहोश
करवट से लेटी
है दोपहरी
20
तक़्न है रूखा
होंठों जमीं पपड़ी
वैशाखी धरा



21
प्यासी चिड़िया
ख़ुश , टोंटी में छिपा
दो बूँद पानी
22
कुँए , छबील
प्यास बूझने वाले
मीत लापता


23
सती का शव
काँधे डाले घूमते
बौराए रुद्र
24
गुलमोहर
खिला, आग रंग की
 धूप -छतरी
-0-

  • किंग फिशर

-0-