भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत 23 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:18, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
विज्ञ विवेकी संशय नासै
तत्त्व ज्ञान, आत्मदर्शी के संशय कभी न फाँसै।
जे मन-इन्द्रिय बस में राखै आत्मवन्त कहलावै
जीव कामना रहित, कर्म बन्धन के सहज दुरावै
भरत-वंश कुलभूषण में फिर कैसें संशय वासै
विज्ञ विवेकी संशय नासै।
पहिने अन्तः युद्ध जीत लेॅ, सब अज्ञान विनाशोॅ
ज्ञान खड़क से संशय काटोॅ, आतम तत्त्व प्रकाशोॅ
वीर धीर गंभीर धनुर्धर बल के नै उपहासै
विज्ञ विवेकी संशय नासै।
सब संशय के कारण बस केवल अविवेकी कहावै
शुद्ध जीव ईश्वर के सुमरी, अन्तःज्ञान जगावै
पहिने अन्तःसमर जीत लेॅ, जे सद्ज्ञान प्रकाशै
विज्ञ विवेकी संशय नासै।