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गीत 5 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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आतमा अचल धीर अविकारी।
हय अव्यक्त-अभेद्य-अजन्मा, देह रूप-गुण धारी।
जनम-मरण से परे आतमा पावन सत्य-सनातन
मृत्यु, जन्म के संग निहित छै, यै पर शोक अकारण
हे अर्जुन, हय महामोह के तों न छिकेॅ अधिकारी
आतमा अचल धीर अविकारी।
जन्म के पहिने कुछ न रहै, नै मृत्यु बाद कुछ रहतै
एकरे बीच प्रकटल देह के अचल नित्य के कहतै?
मरणशील छै देह जगत में, सब विधि प्रकट विकारी
आतमा अचल धीर अविकारी।
सब विधि अचरज पूर्ण आतमा के विरले जन जानै
जैसे नयन, नयन के सुन्दरता के नै पहचानै
जे जानै, से कहि न सकै, हय आत्मतत्व विस्तारी
आतमा अचल धीर अविकारी।