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गीत 6 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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इहै पाँच कारण छै, जेकरा से हर मनुष बँधल छै
शुभ या अशुभ कर्म में प्राणी रूचि अनुसार लगल छै।
मन-वाणी आरो शरीर के
कर्म मनुष के बाँधै,
राखै सदा अशुद्ध बुद्धि
अरु विषय के नित्य अराधै,
शुद्ध स्वरूप आतमा के, कर्ता मूरख समझल छै।
मलिन बुद्धि वाला अज्ञानी जन
यथार्थ नै जानै,
जे आतमा के कहै अकर्ता
वहेॅ यथारथ जानै,
हम कर्ता छी, ई भावोॅ से ज्ञानी पुरुष बचल छै।
ज्ञानी सांसारिक कर्मो से
बल्हों नै ओझरावै,
मृत्युलोक में भी ऊ मरि केॅ
सदा अमरता पावै,
कभी पाप से बँधै न ऊ जे अन्तः से निर्मल छै
शुभ या अशुभ कर्म में प्राणी रूचि अनुसार लगल छै।