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गुज़रो न बस क़रीब से ख़याल की तरह / कविता किरण

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गुज़रो न बस क़रीब से ख़याल की तरह
आ जाओ जिंदगी में नए साल की तरह

कब तक तने रहोगे यूँ ही पेड़ की तरह
झुक कर गले मिलो कभी तो डाल की तरह

आंसू छलक पड़ें न फिर किसी की बात पर
लग जाओ मेरी आँख से रूमाल की तरह

ग़म ने निभाया जैसे आप भी निभाइए
मत साथ छोड़ जाओ अच्छे हाल की तरह

बैठो भी अब ज़हन में सीधी बात की तरह
उठते हो बार बार क्यों सवाल की तरह

अचरज करूँ "किरण" मैं जिसको देख उम्र-भर
हो जाओ जिंदगी में उस कमाल की तरह