भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुपचाप / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीड़ा से दिन-रात तड़प कर कुछ तो मन की बात कह गये,
कुछ जीवन को शीष झुका कर, जो आया-चुपचाप सह गये!

मन में मीठी अभिलाषा ले, बैठ रेत के रचे घरौंदे,
पर पानी की लहरें आई, अभी बने थे-अभी बह गये!

बन-बन भटक दीन पंछी ने तिनके चुन-चुन नीड़ रचा था,
सहसा आँधी उठी भयंकर, मन के सारे महल ढह गये!

गिरे वियोगी के जो आँसू, धरती पर हो गये ओसकण,
मोती हुए गिरे जो जल में, नभ में जा नक्षत्र हो गये!

पीड़ा से दिन-रात तड़प कर कुछ तो मन की बात कह गये,
कुछ जीवन को शीष झुकाकर, जो आया-चुपचाप सह गये!