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1
 
1
छुपा है चाँद
 
आँचल में घटा के
 
हुई व्याकुल रात
 
कहे किससे
 
अब दिल की बात
 
गिरे ओस के आँसू।
 
2
 
उमग पड़ी,
 
खुशबू की सरिता
 
पुलकित शिराएँ ।
 
‘ नहीं छोड़ेंगे’-
 
कहा जब उसने,
 
थी महकीं  दिशाएँ ।
 
3
 
लहरा गया
 
सुरभित आँचल,
 
धारा बनकरके
 
बहे धरा पे
 
सुरभित वचन ;
 
महका था गगन ।
 
4
 
बीता जीवन
 
कभी घने बीहड़
 
कभी किसी बस्ती में
 
काँटे भी सहे
 
कभी फ़ाक़े भी किए
 
पर रहे मस्ती में ।
 
5
 
तुमसे कभी
 
नेह का प्रतिदान
 
माँगूँ तो टोक देना
 
फ़ितरत है-
 
भला करूँ सबका
 
बुरा हो ,रोक देना ।
 
6
 
 
खाए हैं घाव
 
खाए हैं घाव
 
चलो उनको धो लें
 
चलो उनको धो लें
पंक्ति 48: पंक्ति 14:
 
गले  से लगकर  
 
गले  से लगकर  
 
जीभर हम रो लें।
 
जीभर हम रो लें।
7
+
2
हज़ारों मिले
+
पथ में मीत हमें
+
चुपके से खिसके
+
तुम-सा न था
+
साथ निभाने वाला
+
लौटके आने वाला ।
+
8
+
 
राह हमारी
 
राह हमारी
 
ये रोकेंगे सागर  
 
ये रोकेंगे सागर  
पंक्ति 62: पंक्ति 21:
 
खुशबू बनने को
 
खुशबू बनने को
 
फूलों -सा खिलना है ।
 
फूलों -सा खिलना है ।
9
+
3
 
पास  जो बैठे
 
पास  जो बैठे
 
वे मीलों दूर रहे  
 
वे मीलों दूर रहे  
पंक्ति 69: पंक्ति 28:
 
कोसों दूर हो तुम
 
कोसों दूर हो तुम
 
फिर भी पास लगे ।
 
फिर भी पास लगे ।
10
+
4
 
ईर्ष्या का चक्र
 
ईर्ष्या का चक्र
 
सिर पर सवार
 
सिर पर सवार

06:32, 17 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण


1
खाए हैं घाव
चलो उनको धो लें
दु:ख के पन्ने खोलें
करता है जी
गले से लगकर
जीभर हम रो लें।
2
राह हमारी
ये रोकेंगे सागर
फिर भी मिलना है;
तेरे दिल की
खुशबू बनने को
फूलों -सा खिलना है ।
3
पास जो बैठे
वे मीलों दूर रहे
उनसे क्या शिक़वा !
माना हमसे
कोसों दूर हो तुम
फिर भी पास लगे ।
4
ईर्ष्या का चक्र
सिर पर सवार
बही लोहित धार
कुछ न पाया
बैचैनी सदा मिली
सब कुछ गँवाया ।