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जब राम बिआहि घर आयल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह करके आने पर बहन भाई और भाभी से इनाम पाने के लिए दरवाजा रोककर हीरा-मोती की माँग करती है। भाई अपनी बहन को इंद्राणी तथा अपने ससुर को तपस्वी कहकर बहन की इच्छा पूरी करने में अपनी असमर्थता प्रकट करता है और कहता है कि खोंयछे में तो केवल दूब और धान-मात्र हैं। बहन उसे भी लेने को तैयार है, लेकिन सोने की सुपती में।

जब राम बिआहि<ref>विवाह करके</ref> घर आयल, बहिनी छेंकल दुआर हे।
हीरा मोती जब कबुलब<ref>स्वीकार करेंगे</ref>, तबै छोड़ब दुआर हे॥1॥
तोहें बहिनी छिका<ref>हो</ref> इनर<ref>इंद्र-इंद्राणी</ref>, हमें भैया तपसी भिखार हे।
तपसी के बेटी बिआहि घर आबल, खोंइछा देल दुबि धान<ref>दूब</ref> हे॥2॥
सोना के सुपती गढ़ैहऽ भैया, ताहि झाड़बै<ref>झाडूँगी</ref> दुबि धान हे॥3॥

शब्दार्थ
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