जब रूह-ए-अवाम लुटेंगी
जब क़फ़स में साँसें घुटेंगी
और सब्र के बाँध टूटेंगे
हाँ तब आवाजें उठेंगी
जब दरीचे-लब खुलेंगें
औ हवा में नगमे घुलेंगें
जब इक सैलाब आएगा
तब दाग-ए-ज़ुल्म धुलेंगें
दरया का ख़ाक में मिलना
दरख़्त, दीवार का हिलना
देखेंगे के इसके बाद देखेंगे
फिर से बहार का खिलना