भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब से देखा है तिरे हाथ का चांद / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब से देखा है तिरे हाथ का चांद
मैंने देखा ही नहीं रात का चांद

जुल्फ़-ए-शबरंग के सद राहों में
मैंने देखा है तिलिस्मात का चांद

रस कहीं, रूप कहीं, रंग कहीं
एक जादू है ख़यालात का चांद