भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जमी पर खेल कैसा हो रहा है / एहतराम इस्लाम

Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 5 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एहतराम इस्लाम |संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम }} …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जमी पर खेल कैसा हो रहा है
समूचा दौर अंधा हो रहा है

कहाँ कोशिश गई बेकार अपनी
जो पत्थर था वो शीशा हो रहा है
 

न रोके रुक सकेगी अब तबाही
की पानी सर से ऊँचा हो रहा है

घरों में कैद लोगों आओ देखो
सड़क पर क्या तमाशा हो रहा है

ठिकाने लग रहा है जोश सबका
हमारा जोश ठण्ढा हो रहा है

जजाल वालों के हातोह ही गजब है
गज़ल के साथ धोखा हो रहा है

मिलेगा एहतराम अपने नगर में
तुम्हें ये वहम कैसा हो रहा है