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ज़ब्त-ए-फ़ुगाँ से आ गई होंटों पे जाँ तलक / 'शोला' अलीगढ़ी

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ज़ब्त-ए-फ़ुगाँ से आ गई होंटों पे जाँ तलक
देखोगे मेरे सब्र की ताक़त कहाँ तलक

ग़फ़लत-शेआरहा के तग़ाफुल कहाँ तलक
जीता रहेगा कौन तेरे इम्तिहाँ तलक

वो मेरी आरजू थी जो घुट घुट के रह गई
वो दिल की बात थी जा ेन आई ज़बाँ तलक

गुलशन में आ के तुम तो अजब हाल कर गए
भूले हुए हैं मुर्ग़-ए-चमन आशियाँ तलक

पामाल करने ख़ाक उड़ाने से फ़ाएदा
ऐसे चलो कि मेरा मिटा दो निशाँ तलक

याद आए छुट के दाम से सय्याद के करम
पहुँचा दो मुझ को कोई मिरे मेहरबाँ तलक

‘शोला’ के बाद ख़त्म है ईजाद-ए-तर्ज़-ए-नौ
कुछ लुत्फ़ था सुख़न का उसी ख़ुश-बयाँ तलक