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"ज़िन्दगी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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एक दिन ज़िन्दगी मिली थी मुस्कुराते हुए
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उसका पूछा जो पता तो वो तनिक सकुचाई
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वो सीता और सलमा, घूँघट-बुर्के में शरमाते हुए
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कभी कोई एक मंजा खरीदकर लाया
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और डोरी में बँधकर उसे जो उचकाया
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वो पतंग बनकर बहुत ऊँचा उड़ना चाहती थी
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काट डाले पर किसी ने उसके फड़फड़ाते हुए
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कहते हैं गीता जिसे वो हरेक मंदिर में
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और कुरआन जिसे कहते हैं हर मस्जिद में
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हैं बहुत शर्मनाक उनकी करतूतें
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उन्हें ही देखा उसके पन्ने फाड़कर जलाते हुए
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है जिनको गर्व बहुत अपनी संस्कृति पर
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उनसे लुटती रही सलमा और निर्भया बनकर
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जिनका इतिहास दुर्गा और रानी झाँसी हैं
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उन्हें ही देखा चीरहरण पे सर झुकाए हुए
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आज भिखारिन सही वो उनकी गलियों की
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कल कटोरे में उसके कुछ न कुछ तो होगा ही
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आज होगा नहीं तो फिर कल होगा
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उसके फटे आँचल में कभी न कभी मखमल होगा 
  
 
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09:23, 28 जून 2019 के समय का अवतरण


कभी छत पर कभी गलियों में आते-जाते हुए
एक दिन ज़िन्दगी मिली थी मुस्कुराते हुए
उसका पूछा जो पता तो वो तनिक सकुचाई
वो सीता और सलमा, घूँघट-बुर्के में शरमाते हुए
कभी कोई एक मंजा खरीदकर लाया
और डोरी में बँधकर उसे जो उचकाया
वो पतंग बनकर बहुत ऊँचा उड़ना चाहती थी
काट डाले पर किसी ने उसके फड़फड़ाते हुए
कहते हैं गीता जिसे वो हरेक मंदिर में
और कुरआन जिसे कहते हैं हर मस्जिद में
हैं बहुत शर्मनाक उनकी करतूतें
उन्हें ही देखा उसके पन्ने फाड़कर जलाते हुए
है जिनको गर्व बहुत अपनी संस्कृति पर
उनसे लुटती रही सलमा और निर्भया बनकर
जिनका इतिहास दुर्गा और रानी झाँसी हैं
उन्हें ही देखा चीरहरण पे सर झुकाए हुए
आज भिखारिन सही वो उनकी गलियों की
कल कटोरे में उसके कुछ न कुछ तो होगा ही
आज होगा नहीं तो फिर कल होगा
उसके फटे आँचल में कभी न कभी मखमल होगा 