Last modified on 1 जून 2018, at 20:23

जिनके स्वर जय जयकारों में / राम लखारा ‘विपुल‘

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 1 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम लखारा ‘विपुल‘ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिनके स्वर जय जयकारों में शामिल होना ना चाहे
उनको यह आदेश है कि वे दूर देश में बस जाएं।

हमको पाने में गद्दी ने
मनका मनका फेरा होगा।
जो हमको राजा न पुकारे
निश्चित चोर लुटेरा होगा।

फिर भी इतनी छूट चलो दी जिसको साधू बनना हो
ताल तलैया छोड़ सभी वो सीधे तीर्थ बनारस जाएं।

शिष्टाचारों की होली में
नियमों के सरकंडे जलते।
ज्यादा भीड़ जुटे इस खातिर
शब्दों के हथकंडे चलते।

मनोरंजन के लिए उलझकर हम सिक्के छलकाते कि
राजसभाओं में जाए या मेले के सर्कस जाएं?

जो बच्चें-बच्चें कहकर यूं
मीठे बोल सुना जाए फिर।
कभी जरूरी नहीं कि उसको
मां का रूप चुना जाए फिर।

कुछ कुंडलियां ऐसी भी हैं जिनसे सूझबूझ बचना
वरना संभव वो नागिन बन अपने बच्चे डस जाएं।