भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुगनू चमके, मौसिम बदला, रात हुई है प्यारी / हरिराज सिंह 'नूर'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:43, 17 अक्टूबर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुगनू चमके, मौसिम बदला, रात हुई है प्यारी।
ऐसे में मेरी भी उनसे, बात हुई है प्यारी।

मेरी आँखों ने देखा है, अद्भुत एक नज़ारा,
पानी-पानी बारिश में वो ज़ात हुई है प्यारी।

ऐसा बदला सारा आलम कुछ न रहा कहने को,
आग लगी तन मन में जिससे घात हुई है प्यारी।

सतरंगी फूलों ने मेरी बग़िया महकाई है,
मौसिम ने अँगड़ाई ली है प्रात हुई है प्यारी।

‘नूर’ नये सूरज की किरनें उजियारा फैलाएँ,
 बादे-सबा से मेरी भी तो बात हुई है प्यारी।