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जुर आई ललाजू की सारियाँ, बैठी मीठी गावें गारियाँ / बुन्देली
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जुर आई ललाजू की सारियाँ, बैठी मीठी गावें गारियाँ।
तुम नृप दशरथ लाल कहाये, ब्याहन काज जनकपुर आये,
तुम हो कौशल्या के जाये, सुनियत पति बिन सुत उपजाये,
इनकी माता को हैं बलिहारियाँ, बैठी मीठी गावें गारियाँ।
नईयाँ भरत भोग अनुरागी, इनके बहनोई बैरागी,
बहना शृँगी ऋषि संग लागी, अपनी कुल मर्यादा त्यागी,
सुन नारी हँस दैबे तारियाँ बेठी मीठी गावें गारियाँ।
इनकों देखत त्रिया ताड़का आई, ताखों देखत गये रिसाई,
बाकौ मारौ है खिसयाई, जौ करतूत सुनौ मेरी माई,
सुनै नारी हँस दैवे तारियाँ, बैठी मीठी गावें गारियाँ।
आखिर अबला आये बिचारी, जिन खों बिन हथियारन मारी,
हम है जनकपुर की नारी, सबरी सारीं लगें तुमारी,
दुल दुर्गा हैं बलिहारियाँ, बैठी मीठी गावें गारियाँ।