भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो भी, जब भी दिलेर बोलते हैं / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>जो भी, जब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:30, 14 जून 2019 के समय का अवतरण
जो भी, जब भी दिलेर बोलते हैं
कर के दुश्मन को ज़ेर बोलते हैं
कितनी जल्दी समझ मे आती है
बात जब धन कुबैर बोलते हैं
जिनको सच बोलने की आदत है
ख़ौफ़ व दहशत बग़ैर बोलते हैं
बोलते कुछ हैं दोस्तों से हम
कर के वो हेर फेर बोलते हैं
याद आती हैं बात अपनों की
जब मोहब्बत से ग़ैर बोलते हैं