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जो ये जानूं, मुख़्तसर हक आप पर मेरा भी है / वीनस केसरी

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जो ये जानूं, मुख़्तसर हक आप पर मेरा भी है।
तब तो समझूं, मुन्तज़िर हूँ, मुन्तज़र मेरा भी है।

जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है।
शहर में दंगे की ज़द में एक घर मेरा भी है।

घरघराती आरियों में दब गई थी हर सदा,
कुछ कबूतर कह रहे थे,,, पर शज़र मेरा भी है।

आखिरश नंगी हकीकत से हुआ है सामना,
आइना खुश था कि पत्थर पे असर मेरा भी है।
 
आसमां वालों! मिलेगा जा-ब-जा तुमको जवाब,
तुम से टकराना पड़ा तो, बालोपर मेरा भी है।

इश्क में हद से गुज़र जाने को वो तय्यार हैं,
और ऐसा ही इरादा अब इधर मेरा भी है।

वक्त तो ये चाहता था, झुक के मैं उससे कहूँ,
"आसमां इक चाहिए मुझको कि सर मेरा भी है।"

रहगुज़र मंजिल हुई, अब मंजिलें हैं रहगुज़र,
वो जो सबका राहबर है राहबर मेरा भी है।

खुद को समझे बिन किसी को क्या समझ पाऊंगा मैं,
इसलिए अब खुद से खुद का इक सफ़र मेरा भी है।