भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे सर से तेरी बला जाए जब तक / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:51, 7 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> तेरे सर स…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तेरे सर से तेरी बला जाए जब तक
छले जा छले जा छला जाए जब तक

गला तेरा अच्छाई घोंटेगी इक दिन
बुराई में पल तू पला जाए जब तक

मुहब्बत की राहों में चलना है बेहतर
चला जा चला जा चला जाए जब तक

शबे-वस्ल है ऐ मुहब्बत की शम-आ
सनम तू जले जा जला जाए जब तक

'रक़ीब' आतिशे ग़म बना देगी कुन्दन
गले जाओ पल पल गला जाए जब तक