भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्पण की धूल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:18, 27 जून 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


धूल झाड़ दो
दर्पण की
पीड़ा दूर करो
मन की।
क्रोध है शत्रु
चूर करो।
है आग ईर्ष्या
दूर करो।
तब आँगन
मुस्काएगा
ये मन आरती
गाएगा।
ईर्ष्या का है
पाप बड़ा
क्रोध भस्मासुर
ताप बड़ा।
इनको दूर
भगा दोगे
जीवन को
महका दोगे।
दुनिया की गर
मानोगे
खुद को कभी
न जानोगे।
हर अपना बन
छल करता
कभी न पीड़ा
हल करता।
दर्द सदा जो
तुम दोगे
मिला ,उसे भी
खो दोगे।

-0-