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दिल को जब अपने गुनाहों का ख़याल आ जायेगा / अनवर जलालपुरी
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दिल को जब अपने गुनाहों का ख़याल आ जायेगा
साफ़ और शफ्फ़ाफ़ आईने में बाल आ जायेगा
भूल जायेंगी ये सारी क़हक़हों की आदतैं
तेरी खुशहाली के सर पर जब ज़वाल आ जायेगा
मुसतक़िल सुनते रहे गर दास्ताने कोह कन
बे हुनर हाथों में भी एक दिन कमाल आ जायेगा
ठोकरों पर ठोकरे बन जायेंगी दरसे हयात
एक दिन दीवाने में भी ऐतेदाल आ जायेगा
बहरे हाजत जो बढ़े हैं वो सिमट जायेंगे ख़ुद
जब भी उन हाथों से देने का सवाल आ जायेगा