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धूप-धुपाया / केदारनाथ अग्रवाल
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धूप धूपाया
यह दिन भाया,
जैसे हो मेरी ही काया-
कविताओं ने
जिसे बनाया,
जिसको लय से गाया!
शाम हुए भी
मेरी शाम न होगी!
मेरी काया
कभी अनाम न होगी!
रचनाकाल: १७-१०-१९९१