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ननिहर / नवीन ठाकुर 'संधि'

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जनम देलकी हमरा माय,
मतुर, पोसलकी मौसी-नानी।

कैंन्हेंकि खनदानोॅ में छेलोॅ,
एकटा-हमरेॅ तोतरोॅ मीठोॅ वाणि।

नानी जब्बेॅ हमरोॅ जाय हटिया,
वैं जडूर लानेॅ हमरा लेॅ झिलिया।
हमरा देॅ चोरायकेॅ बेशी एके बेरिया,
थोड़ोॅ-टा-देॅ वोकरोॅ बेटी छेलै लिलिया।
हमरा सुताय छेलै कही-कही कहानी।
जनम... वाणि।

हम्में नानी रोॅ छेल्हाँ खूब पियारोॅ,
दिन-रात हमरा कहेॅ वैं बिलारोॅ।
हमरोॅ बड़का-बड़का आँख देखी कखनू करेॅ किनारोॅ,
मतुर, माय रोॅ मारोॅ सें झपाय केॅ राखेॅ आँचरोॅ।
वैं ‘‘संधि’’ केॅ देखी काटलकी आपनोॅ जवानी,
जनम... वाणि।