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नये समाज का सृजनहार / एस. मनोज

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मैं गढ़ना चाहता हूँ
एक नया समाज
समतावाला, न्यायवाला
शान्ति और स्नेहवाला
मान और सम्मानवाला
व्यक्ति की पहचानवाला।
वे भी गढ़ना चाहते हैं
नया समाज
जहाँ सब कुछ
माल हो, बिकाऊ हो
कुछ भी नहीं टिकाऊ हो
नारी की देह हो
देह का व्यापार हो
व्यापार पर ही टिका
सारा बाजार हो
बाजार पर ही टिका
सत्ता का ताज हो।
नया समाज
न बनेगा मुझसे न उनसे
आप सब जैसा चाहेंगे
समाज वैसा ही बनेगा।
नए समाज का सृजनहार
आपको ही बनना है।