भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नासिका ऊपर भौँहन के मधि / देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देव }} <poem> नासिका ऊपर भौँहन के मधि कुँकुम बिँदु म...)
नासिका ऊपर भौँहन के मधि
कुँकुम बिँदु मृगंमद को कनु ।
पूँछ ते पँख पसारि उड़्यो
मुख ओर खगा लखि मोतिन को गनु ।
देव कै नैन लुलान पला धरि
भाग सुहाग के ताल तटी तनु ।
नारि हिये त्रिपुरारि बँध्यो लखि
हारि के मैन उतारि धयो धनु ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।