भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाहक ही डर गई, हुज़ूर / नागार्जुन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 28 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नागार्जुन |संग्रह=हज़ार-हज़ार बाह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भुक्खड़ के हाथों में यह बन्दूक कहाँ से आई
एस० डी० ओ० की गुड़िया बीबी सपने में घिघियाई

बच्चे जागे, नौकर जागा, आया आई पास
साहेब थे बाहर, घर में बीमार पड़ी थी सास

नौकर ने समझाया, नाहक ही दर गई हुज़ूर !
वह अकाल वाला थाना, पड़ता है काफ़ी दूर !