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नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं / 'रम्ज़ी' असीम

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नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं
मुझ से मिलने मिरे एहबाब नहीं आते हैं

शहर की भीड़ से ख़ुद को तो बचा लाता हूँ
गो सलामत मिरे आसाब नहीं आते हैं

तिश्‍नगी दश्‍त की दरिया को डुबो दे न कहीं
इस लिए दश्‍त में सैलाब नहीं आते हैं

डूबते वक़्त समंदर में मिरे हाथ लगे
वो जवाहिर जो सर-ए-आब नहीं आते हैं

या उन्हें आती नहीं बज़्म-ए-सुख़न आराई
या हमें बज़्म के आदाब नहीं आते हैं

हम-नशीं देख मकाफात-ए-अमल है दुनिया
काम कुछ भी यहाँ असबाब नहीं आते हैं