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नेपाली / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा

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क. एशियाली जागृति–युग–शिशु
हामी उषासुत नयपाली
हामी हिमालय–तनय पिपासु
चढेन चुचुरा करमाली।

ख. हामी बुद्धका भूका उद्भिज
जानकी–फूलका मधु–आली,
अरनिकोका अङ्गुल–ज्योति,
पृथिवी–नारायण बाली।

ग. त्रिभुवनका हौं स्वप्न सुनौला,
महेन्द् उपवन पौधाली
बाघहरुका जोरी–पारी हुँ,
प्रजातन्त्रका पहराली।

घ. मानवताका ढुक्कुर–कुर्लन,
कल्पन डाँफे–रङ्गजाली,
मुनिका समाधिहरुको कुसुमको
सुगन्ध लहर हुँ हैमाली।

ङ घनी विपिनका चिडिया हामी,
प्यार कुर्लिंदा जगडाली,
मानवताका पर्वत–मन्दिर,
स्थायी शान्तिका सञ्चाली।

च. भारत–पोषक हिमगिरि–उरिका
उदार द्रव हुँ नग–जाली,
हामी पूर्वका देवदूतका हुँ,
प्रथम रश्मिका देशाली।

छ. भूमण्डलका गोल–सदनका
अंशियार हुँ, एक थाली
न्यौछावरका पुजारी हुँ
विश्व–मानव नयपाली।