"पात टूटकर डाल से / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatDoha}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatDoha}} | {{KKCatDoha}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | 103 | ||
+ | जीवन तपता थार था, दूर- दूर सुनसान । | ||
+ | तुमसे मिल क्या चाहिए ,ईश्वर से वरदान। | ||
+ | 104 | ||
+ | बहुत दूर जाकर बसे, मन के इतने पास। | ||
+ | तेरा मन जब हो दुखी,मैं भी बहुत उदास।। | ||
+ | 105 | ||
+ | तेरे मन जब- जब जगी,राई भर भी पीर। | ||
+ | पर्वत मेरे मन बनी,करती रोज़ अधीर।। | ||
+ | 106 | ||
+ | मन में या परदेस में,रहो कहीं तुम दूर। | ||
+ | मुझको केवल चाहिए, प्यार सदा भरपूर।। | ||
+ | 107 | ||
+ | जितने सारे नाम हैं , वे सारे बेकार। | ||
+ | रिश्ता केवल एक है, मन का मन से प्यार। | ||
+ | 108 | ||
+ | तेरे पग जिस मग चलें, बिछें वहाँ पर फूल। | ||
+ | आगे आगे मैं चलूँ, चुनता सारे शूल।। | ||
+ | 109 | ||
+ | साँस- साँस करती सदा,बस इतनी मनुहार। | ||
+ | खुशियाँ ही बैठी रहें, हर पल तेरे द्वार।। | ||
+ | 110 | ||
+ | यश -वैभव का क्या करूँ, यह सब गहरे कूप। | ||
+ | मेरे प्रिय को दीजिए,सारे सुख की धूप।। | ||
+ | 111 | ||
+ | यही कामना एक है,मुस्कानें हों द्वार। | ||
+ | ताप कभी आएँ नहीं,बरसे केवल प्यार।। | ||
+ | 112 | ||
+ | जीवन में हमको मिले, कुछ ऐसे किरदार। | ||
+ | मानों ईश्वर ने लिया,प्रेम -पगा अवतार।। | ||
+ | 113 | ||
+ | आँखों में निर्मल भरा, निर्झर जैसा प्यार। | ||
+ | सारा सुख पहना गए,उन बाहों के हार | ||
+ | 114 | ||
+ | '''पात टूटकर डाल से,कभी न आए हाथ।''' | ||
+ | पर वे मिलकर ही रहे , जिनका सच्चा साथ।। | ||
+ | 115 | ||
+ | मानव का जीवन मिला, किए दानवी काम। | ||
+ | जागे थे | ||
21:14, 14 मई 2019 का अवतरण
103
जीवन तपता थार था, दूर- दूर सुनसान ।
तुमसे मिल क्या चाहिए ,ईश्वर से वरदान।
104
बहुत दूर जाकर बसे, मन के इतने पास।
तेरा मन जब हो दुखी,मैं भी बहुत उदास।।
105
तेरे मन जब- जब जगी,राई भर भी पीर।
पर्वत मेरे मन बनी,करती रोज़ अधीर।।
106
मन में या परदेस में,रहो कहीं तुम दूर।
मुझको केवल चाहिए, प्यार सदा भरपूर।।
107
जितने सारे नाम हैं , वे सारे बेकार।
रिश्ता केवल एक है, मन का मन से प्यार।
108
तेरे पग जिस मग चलें, बिछें वहाँ पर फूल।
आगे आगे मैं चलूँ, चुनता सारे शूल।।
109
साँस- साँस करती सदा,बस इतनी मनुहार।
खुशियाँ ही बैठी रहें, हर पल तेरे द्वार।।
110
यश -वैभव का क्या करूँ, यह सब गहरे कूप।
मेरे प्रिय को दीजिए,सारे सुख की धूप।।
111
यही कामना एक है,मुस्कानें हों द्वार।
ताप कभी आएँ नहीं,बरसे केवल प्यार।।
112
जीवन में हमको मिले, कुछ ऐसे किरदार।
मानों ईश्वर ने लिया,प्रेम -पगा अवतार।।
113
आँखों में निर्मल भरा, निर्झर जैसा प्यार।
सारा सुख पहना गए,उन बाहों के हार
114
पात टूटकर डाल से,कभी न आए हाथ।
पर वे मिलकर ही रहे , जिनका सच्चा साथ।।
115
मानव का जीवन मिला, किए दानवी काम।
जागे थे