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पिया फागून रोॅ भोर / प्रदीप प्रभात
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अमावस के रात छै, तारा करै झलमल।
बातें-बातोॅ पर गोरी हाँसै छै खलखस॥
माथा सेॅ फेकी अँचरा पटोर।
पिया फागून रोॅ भोर॥
गुदगुदी लगाबै छै हमरा ई जरंताहा।
बुझैं नै फुलवाड़ी खंदक आ पाया॥
कौनेॅ समझैतै केकरोॅ कहलोॅ के मानै।
कखनू फूल तेॅ, कखनू काटोॅ गढ़ाबै॥
रसबंती भौंरा रगड़ै ढोरोॅ पर ठोर।
पिया फागून रोॅ भोर॥
महुआ रोॅ माला मेॅ शोभै छै कंत।
बही रहलोॅ छै फागून के रंथ॥
गम-गम गमकै सौसेॅ ठोॅ गॉव।
मन करै रहि-रहि वही ठियाँ जॉव॥
लागलोॅ छै ग्वारिन के गोकुल मेॅ रास।
पिया देखोॅनी फूल फूललोॅ छै परास॥
नैंहरा रोॅ सुधियोॅ कखनू नै आबै।
ननदोसी तेॅ आठोॅ आङ सहलाबै॥
दियोरोॅ सेॅ बढ़ी केॅ ई छँटलोॅ छिनार।
बही रहलोॅ छै फागून रोॅ भोरकोॅ बयार॥