भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीड़ माथै म्हारो जोर कांई / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:22, 16 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आ सदी मिजळी मरै /...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पीड़ माथै म्हारो जोर कांई
रूं-रूं में ऊगगी थोर दांई
किंवाड़ां जड़्या काच हां म्हे तो
अठै अजमावो थे जोर कांई
है जिका गाभा तो पै’र ऊभो
सूकावूं अबै म्हैं धो’र कांई
थे तो उमड़ो घुमड़ो बादळ बण
म्हैं नाचूंला बन रै मोर दांई
ओळूं-धन लियां फिरूं मेळै में
देखूं अबै करसी चोर कांई