भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुराने ठाँव से रहती है लिपटी / विजय राही

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 25 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय राही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुराने ठाँव से रहती है लिपटी ।
ग़रीबी गाँव से रहती है लिपटी ।

हमारे खेत की मिट्टी है साहब !
हमेशा पाँव से रहती है लिपटी ।

इसे पानी से नफ़रत हो गई क्या?
ये मछली नाँव से रहती है लिपटी ।

वो मेरी जान है 'राही' जो मेरे,
बदन की छाँव से रहती है लिपटी ।