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"प्रिय! अब जाने की करो नहीं हठ / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | टपकती बूँदें, सिसकती साँसें सिमट | ||
+ | असीम संघर्ष मेरी घुँघराली लट-लट | ||
+ | कुछ समय हो, दो प्रिय इन्हें सुलट | ||
+ | कम्पित कलियाँ, नीरवता का जमघट | ||
+ | इन्हें खिला दो प्रिय पुनः दृष्टि पलट | ||
+ | पलकें खुलना ही ना चाहे मदिरा-घट | ||
+ | अब मुँद जाएँ, तुमसे ये नयना लिपट | ||
+ | दोनों नयना उलझाए गंगा के तट | ||
+ | प्रिय ! अब जाने की करो नहीं हठ! | ||
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09:11, 28 जून 2019 के समय का अवतरण
प्रिय ! हम स्वप्न-पाश में आलिंगनरत
अधर धरे अधरों पर, प्रेम-प्रतिध्वनित
बस कुछ ही शेष है जीवन घट-घट
टपकती बूँदें, सिसकती साँसें सिमट
असीम संघर्ष मेरी घुँघराली लट-लट
कुछ समय हो, दो प्रिय इन्हें सुलट
कम्पित कलियाँ, नीरवता का जमघट
इन्हें खिला दो प्रिय पुनः दृष्टि पलट
पलकें खुलना ही ना चाहे मदिरा-घट
अब मुँद जाएँ, तुमसे ये नयना लिपट
दोनों नयना उलझाए गंगा के तट
प्रिय ! अब जाने की करो नहीं हठ!