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प्रेम का इतिहास सारा / मनीषा शुक्ला

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लिख रखा है प्रेम का इतिहास सारा, तब
लिखूँ तो क्या लिखूं मैं ये बताओ

लिख रखी है आंच उस लंका दहन की
जो पहुंचती जा रही हर एक घर में
कौन जाने कौन सी सीता अभागी
फिर समा जाए धरातल के उदर में
व्यर्थ है जब राम का वनवास सारा, तब
लिखूँ तो क्या लिखूं मैं ये बताओ

प्रश्न है ये आज की हर द्रौपदी का
लाज मेरी यदि बचा सकते मुरारी
केश तक भी क्यों भला पहुंचा दुशासन
पांडवो ने वीरता किस मोल हारी
जब नहीं पुरुषार्थ पर विश्वास सारा, तब
लिखूँ तो क्या लिखूं मैं ये बताओ

इन अतीतों से समय ले ले गवाही
क्यों रही हैं कुंतियाँ इतनी विवादित
सूर्य के संग प्रेम का वरदान पाया
फिर भला क्यों रश्मियाँ इतनी विवादित
कर न पाए न्याय जब आकाश सारा, तब
लिखूँ तो क्या लिखूं मैं ये बताओ

क्यों भला यम को चुनौती दे सती अब
किसलिए अब पद्मिनी जौहर दिखाए
कब तलक राघव प्रतीक्षा में रहेंगी
तोड़ देंगी ख़ुद अहिल्याएं शिलाएं
जब ज़रूरी हो पुनर्विन्यास सारा, तब
लिखूँ तो क्या लिखूं मैं ये बताओ