भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहर में बांध ले काफिया रख / गौतम राजरिशी

Kavita Kosh से
Gautam rajrishi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 8 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहर बाँध ले काफ़िया रख
गज़ल में हर इक वाकिया रख

बढ़े शान ना दोस्तों से
कि दुश्मन तो कुछ शर्तिया रख

उठे हैं असुर फिर यहाँ अब
विभीषण-सा इक भेदिया रख

लिखा और जाना है कुछ तो
जरा साफ ये हाशिया रख

नहीं मेल है साज-सुर में
जरा बोल ही बढ्‍ढ़िया रख

जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख