भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाल लीला / श्रीनाथ सिंह

Kavita Kosh से
Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 5 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हैं बस हिलती डुलती पुतली।
अभी बोलते बोली तुतली।।
पर ये दोनों आँखें प्यारी।
सदा मांगती दुनिया सारी।।
इनकी अजब अजीब कहानी।
चाहे पत्थर हो या पानी।।
रखते जग में सब से नाता।
कोई माता कोई भ्राता।।
कभी चोर बनते छिप जाते
जू जू बन कर कभी डराते।।
या कोयल बन कू ! कू ! गाते।
तरह तरह के वेष बनाते।।
जो लखते उस पर ललचाते।
आ जा, आ जा, उसे बुलाते।।
आता अगर न तो झल्लाते।
बड़े बड़े आँसू टपकाते।।
जिसको इतना रो कर पाते।
छिन में भूल उसी को जाते।।
किसी और हित मुँह कर गीला।
बड़ी निराली इनकी लीला।।