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बुरो संग / हर्ष पुरी

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अकुलौ<ref>कुलहीन, नीच</ref> माँ माया<ref>प्रेम</ref> करी, कैकी<ref>किसी की</ref>बी नी पार तरी।
बार<ref>बारह</ref> बिथा सिर थरी<ref>आ जाती है</ref>, कू रोयेंद<ref>रोना पड़ता</ref>।
जख तख मिसे<ref>बातें</ref> लांद, झूटा-फीटा<ref>झूठे सच्चे</ref> सऊँ<ref>कसम</ref> खंद।
दियुं लेयुं तने<ref>बेकार</ref> जांद, अपजस पायेंद।
आगो पाछो देखी जाणी, खरी खाणी चुप्प चाणी।
किलै<ref>क्यों</ref> कद झुटि स्याणी<ref>इच्छाएँ</ref>, गांठी पैसा खोयेंद।
मैंत बोदू भली बात, सोच कदु दिन रात।
मुरखू का संग साथ, ज्यान जोख्यूं<ref>खतरा</ref> पायेंद।
आँखु देखि सुणी जाणी, बटोरों मां माया लाणी।
जगत की गालि खाणी, विचारिययुं चाहेंद।
लगणु नी वैकी बाणी, जै की होन दुलि काणी।
पाछ पड़द खैंचा ताणी, ज्यान जोख्यूं पायेंद।

शब्दार्थ
<references/>