भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोलो औ है कैड़ो घर बाबा / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:23, 16 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आ सदी मिजळी मरै /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोलो औ है कैड़ो घर बाबा
म्हांनै तो लागै अठै डर बाबा

भेळा कर सको तो करो मिणिया
गई म्हांरी माळा बिखर बाबा

सांस लेवतां लागै डर म्हांनै
हवा तकात में है जहर बाबा

पाळै-पोखै ईद नै उडीकै
किंयां हुवै अठै गुजर बाबा

जग कीं कैवै पण छोडां कोनी
आं आखरां में है असर बाबा