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भरमें में / लक्ष्मीकान्त मुकुल

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हमरा अंगना में
जामल बा एगो जटहवा
सुनलें रहीं कि एहीजा बहुत पहिले
लहरात रहे गेंदा के फूल

केहू ओकरा के बोअले ना रहे
कतहूँ दूर से हवा के संगे
अघियात आ गइल एहीजा
जैकरा डरे लुका गइल गेंदा
आ हमरा अंगना के
खाद-पानी लेके ऊ बढ़े लागल

ना काटल केहू ओके आरी से
हँसुओं से छूवल ओके केहू ना
बढ़त गइल ऊ गते-गते
घरे लागल भेख ऊ फेड़ लेखा
सगरे फइल गइल कांट
सउँसे धर भ गइल पतई-पतई

आजो हमरा अंगना में बढ़ता ऊ
तबो काटत नइखीं हम
बढ़े बढ़े हम छोड़ले बानीं
काहें कि ऊ
भ गइल बा हमरा सवांग मतिन

बाकिर हमरा भाई के हाथ में
लउकत बा खुरपी
लुकरो लउकत बा
आ लउकत बा ओकर खुरफात

उखाड़त बा सभ कांटन के
फेनू ले गेंदा रोपे बदे
हम डेरात बानीं देखि के ई सभ
कि कहीं गिर मत जाब
लुकार ओकरा हाथ से
जवना से ऊ जारल चाहता कांट
हम डेरात बानीं कि भरमें में
कहीं जर मात जाव आपन घर