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मन की स्लेट / रंजीता सिंह फ़लक

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औरतों के दुख
बड़े अशुभ होते हैं,
और उनका रोना
बड़ा ही अपशकुन,

दादी शाम को
घर के आँगन में
लगी मजलिस में,
बैठी तमाम बुआ, चाची, दीदी, भाभी
और बाई से लेकर हजामिन तक की
पूरी की पूरी टोली को बताती
औरतों के सुख और दुख का इतिहास

समझाती सबर करना
अपने भाग्य पर
विधि का लेखा कौन टाले
जो होता है अच्छे के लिए होता है

सुनी थी उसने अपने मायके में कभी
भगवत- कथा
थोड़ा-बहुत पढ़ा रामायण और गीता भी
फिर पढ़ने से ज़्यादा सुनने लगी
क्योंकि ज़्यादा पढ़ लेने से
बुद्धि ख़राब हो जाती है
मर्दों की नहीँ पर औरतों की

पूछा था उसने भी कभी अपनी दादी से
की ज़्यादा पढ़ के ख़ाली औरतों की
बुद्धि ही क्यों ख़राब होती है ?
मर्दों की काहे नहीं
तभी डपट के खींचे गए कान
और फूँका गया था
एक मन्त्र
औरतों को नहीँ पूछने चाहिए
कोई सवाल
ज़िन्दगी ख़राब होती है
नहीँ पूछने चाहिए कहाँ से शुरू होता
कोई भी प्रश्न
जैसे
क्यों गए ?
कहाँ गए  ?
क्यो नहीँ बताया ?
कब आओगे ?

ऐसे हर सवाल से लगती है
अच्छे-भले घर में आग
औरत को मुँह बन्द और
दिमाग ख़ाली रखना चाहिए
इससे होती है बरकत
बसता है सुखी संसार
आते हैं देव
विराजती है लक्ष्मी

दिमाग के साँकल बन्द रखो
सारे सवाल मन के ताल में ड़ूबा दो
सारी शिकायतें दिमाग की देहरी पर छोड़ दो
और हाँ मन की कुण्डी भी लगा लिया करो ज़ोर से

ना सुनना कभी सपनों की कोई आहट
सफ़ेद रखो मन की स्लेट
ना गढ़ो कोई तस्वीर
और किसी अभागी रात जो देख लो
कौई चेहरा तो तुरन्त मिटा दो
औरतों के मन की स्लेट हमेशा कोरी रहनी चाहिए ।