भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है / राजूराम बिजारणियां" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजूराम बिजारणियां |संग्रह= }} [[Category:मूल राजस्थान…) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | [[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | ||
− | {{KKCatKavita}}<poem>मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है | ||
सामीं छाती घाव पीड डूंगी है | सामीं छाती घाव पीड डूंगी है | ||
लीर-लीर हुई जावै आंख फाड देख | लीर-लीर हुई जावै आंख फाड देख |
22:59, 30 जून 2013 का अवतरण
मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है
सामीं छाती घाव पीड डूंगी है
लीर-लीर हुई जावै आंख फाड देख
दादू री दोवटी रहीम री लूंगी है
छोड बाम्बी ठाटसूं सांप घूमै हाट में
गतागूम जोगीजी वस हुई पूंगी है
बात तो है सांच सांच नै आंच कठै
मौत साव सस्ती जिंदगाणी मूंघी है