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मेरे समय का सत्य / कुमार मंगलम

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एक

जानता हूँ
कोई नहीं है

परिपूर्ण
सम्भवतः वे भी नहीं थे पूरे

जिन्होंने गढ़े
सफलता के मुहावरे

जो असफल थे
वे सबसे ज़्यादा सफल दिखते थे


दो

अपनी असफलता को
छिपाता
कभी अपनी वाचालता से

तो कभी
अपनी चुप्पियों से

मेरी चुप्पी जब
बहुत वाचाल हो जाती है
तब मैं करता हूँ हत्याएँ


तीन

मैं लापरवाह था
इतना की
अपनी हत्या करता
ख़ुद के गर्दन को दबाता
साँस उखड़ने तक


चार

धोखेबाज़ नहीं देते धोखे
ना ही झूठे, झूठ बोलते हैं

किसी और से
सभी धोखे और झूठ
बड़े सुन्दर ढँग से भागना है
वो भागते हैं अपने निज से


पाँच

कमी मुझमें कुछ नहीं थी
ग़लतियों का पुतला भी नहीं था मैं

अपनी वाचाल चुप्पी
और चुप्पी की वाचालता के बीच

हत्याएँ करते ख़ुद की
अनेक समझौते किए सत्ता से

मैं जी हुज़ूर होता गया
यह मेरी कमी नहीं थी

यह मेरे समय का सत्य था ।