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मेरौ वारौ सौ कन्हैंया / ब्रजभाषा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मेरौ बारौ सो कन्हैंया कालीदह पै खेलन आयो री॥ टेक
ग्वाल-बाल सब सखा संग में गेंद को खेल रचायौरी॥ मेरौ.
काहे की जाने गेंद बनाई काहे को डण्डा लायौरी॥ मेरौ.
रेशम की जानें गेंद बनाई, चन्दन को डण्डा लायौरी।मेरौ.
मारौ टोल गेंद गई दह में गेंद के संग ही धायौरी॥ मेरौ.
नागिन जब ऐसे उठि बोली, क्यों तू दह में आयौरी॥ मेरौ.
कैं तू लाला गैल भूलि गयो, कै काऊ ने बहकायौरी॥ मेरौ.
कैसे लाला तू यहाँ आयो, कैं काऊ ने भिजवायोरी॥ मेरौ.
ना नागिन मैं गैल भूल गयो, ना काऊ ने बहकायौरी॥ मेरौ.
नागिन नाग जगाय दे अपनों याहीकी खातिर आयौरी॥ मेरौ.
नाँय जगाये तो फिर कहदे ठोकर मारि जगायौरी॥ मेरौ.
हुआ युद्ध दोनों में भारी, अन्त में नाग हरायौ री॥ मेरौ.
नाग नाथि रेती में डारौ फन-फन पे बैंन बजायौरी॥ मेरौ.
रमनदीप कूँ नाग भेज दियौ फनपै चिन्ह लगायौरी॥ मेरौ.
‘घासीराम’ ने रसिया कथिके, भर दंगल में गायौरी॥ मेरौ.