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मैं इधर से उधर जब गया ही नहीं / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

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मै इधर से उधर जब गया ही नहीं।
जब हृदय से हृदय भी मिला ही नहीं।।

फिर मुझे क्यों नज़र से गिरा तू दिया।
एक कदम भी कभी तू चला ही नहीं।।

साथ रहकर बड़ी घात करती रही।
वार मुझपर किया जो लगा ही नहीं।।

आज फिर तू नई चाल चलने लगी।
प्यार तो अब तलक तू किया ही नहीं।।

गर कहीं दिल तुम्हारी लगा है बता।
हम कभी तुम्हें आज तक छला ही नहीं।।