भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यादों ने क्या ज़ुल्म किए दिल जानता है / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:38, 21 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> यादों न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यादों ने क्या ज़ुल्म किए दिल जानता है
कैसे हम कल रात जिये दिल जानता है

किन लोगों का हाथ रहा बरबादी में
किस किस ने एहसान किये दिल जानता है

टूटे ख़्वाबों की किरचों ने सारी रात
आंखों पर क्या जब्र किये दिल जानता है

ग़ैर तो आख़िर ग़ैर थे उनसे क्या मतलब
अपनों ने जो ज़ख़्म दिये दिल जानता है

हमको अपने ग़म पोशीदा रखने थे
हमने कितने अश्क पिये दिल जानता है