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रात चले, तू जले ऐ ज़िन्दगी तेरा क्या है / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

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रात चले, तू जले ऐ ज़िन्दगी तेरा क्या है
आई है तो जाएगी, ऐ ख़ुशी तेरा क्या है

मै बाशिंदा उस शहर का, जिसे वक़्त नहीं
सफहों में दबी रह जा, शायरी तेरा क्या है

आज उजाला है तो, कल अँधेरा भी होगा
पखवारे-पखवारे आए चाँदनी तेरा क्या है

जोड़ लूँ ख़ुशी के लम्हे आया बहुत दिन बाद
तू भी कल को चल देगा अजनबी तेरा क्या है

धुआँ उठा है तो कुछ जला भी होगा "काफ़िर"
ठहर जा बारिश तू भी आई गई तेरा क्या है