भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात भर इन बन्द आँखों से भी क्या क्या देखना / अनवर जलालपुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:17, 24 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनवर जलालपुरी }} {{KKCatGhazal}} <poem> रात भर इन...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात भर इन बन्द आँखों से भी क्या क्या देखना
देखना एक ख़्वाब और वह भी अधूरा देखना

कुछ दिनों से एक अजब मामूल इन आँखों
कुछ आये या न आये फिर भी रस्ता देखना

ढूंढ़ना गुलशन के फूलों में उसी की शक्ल को
चाँद के आईने में उसका ही चेहरा देखना

खुद ही तन्हाई में करना ख्वाहिशों से गुफ्तगू
और अरमानों की बरबादी को तन्हा देखना

तशनगी की कौन सी मन्ज़िल है ये परवरदिगार
शाम ही से ख़्वाब में हर रोज़ दरिया देखना